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प्राचीन भारतीय इतिहास से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य

प्राचीन भारतीय इतिहास से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य 


✍️ शिल्पादिकारम को तमिल साहित्य के प्रथम महाकाव्य के रूप में जाना जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है 'नुपूर की कहानी', इसकी रचनाएं इलांगोअदिगल ने की थी। इस ग्रंथ में पत्नी पूजा का उल्लेख मिलता है। यही से इस समाज का मातृसत्तात्मक व्यवस्था से पित्तृसत्तात्मक व्यवस्था की ओर परिवर्तित होने का संकेत मिलता हैं।

✍️ नहपान क्षहरात वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक था। इसके सिक्के अजमेर से नासिक तक के क्षेत्र से मिले हैं। ये चाँदी अथवा ताँबे के हैं। सिक्के निश्चित मानक के हैं। उसके समय में, सोने तथा चाँदी के सिक्के (कार्षापण) को विनिमय दर 1: 35 थी। नासिक के एक लेख में 70 हजार कार्षापणों का मूल्य 2000 स्वर्ण मुद्रा में दिया गया। सिक्कों पर वह 'राजन् की उपाधि धारण किये हुए है। नहपान के अमात्य अर्यमन् का एक अभिलेख जुन्नार (पूना) से मिलता है।

✍️ कन्नगी संगम साहित्य शिल्पादिकारम् की गायिका थी, शिल्पादिकारम् (नूपुर की कहानी) की रचना इलांगो आदिगल ने की थी। इलांगो आदिगल चेर शासक सेनगुट्टूवन का छोटा भाई था। कथानक एक लोकप्रिय कहानी पर आधारित है। 

✍️ भरहुत स्तूप का पता 1873 में कनिंघम महोदय ने लगाया था। उसकी वेष्टनी एवं तोरण द्वार शुंग काल का है। शुंग युग की पक्षी प्रतिमा इसी स्तूप पर चित्रित है इसके अतिरिक्त यक्ष-यक्षिणी प्रतिमा, वृक्ष आलिंगन करती महिला का दृश्य भी प्रमख चित्र है। 

✍️ गुप्तकालीन राजस्व व्यवस्था में भूमिकर संग्रह करने के लिए धुव्राधिकरण तथा भूमि-आलेखों को सुरक्षित करने के लिए महाक्षपटलिक और करणिक नामक पदाधिकारी थे।

✍️ समुद्र गुप्त ने 6 प्रकार की स्वर्ण मुद्राओं का प्रचलन किया – 1. ध्वजाधारी या दण्डधारी या गरुण प्रकार के सिक्के 2. धमुर्धारी प्रकार के सिक्के  3.परशुधारी प्रकार के सिक्के  4. अश्वमेघ प्रकार के सिक्के  5. व्याघ्रनि:हत्ता प्रकार के सिक्के  6. वीणा वादन प्रकार के सिक्के 

✍️ गुप्तोत्तर काल में सामान्य ब्याज की वार्षिक दर 24% थी। देखा जाय तो हर्ष के बाद जो ब्याज की दर थी। उसमें 24% की ब्याज दर कम थी क्योंकि राजपूत काल में ब्याज की दर बहुत अधिक थी।

✍️ गुप्त शासक स्कन्दगुप्त के शासन काल में सोने के सिक्के का वजन सर्वाधिक हो गया था क्योंकि पाँचवीं शती के मध्य से हमें गुप्तों के स्वर्ण सिक्कों में मिलावट मिलने लगती है।

✍️ राजतंरगिणी 1148-1150 ई. के बीच महाभारत शैली में कल्हण द्वारा लिखित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जिसमें कश्मीर के हिन्दू राजवंशों के इतिहास का वर्णन है।

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